अजा एकादशी व्रत कथा: भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी का माहात्म्य (Aja Ekadashi Vrat Katha)
Aja Ekadashi Vrat Katha: इसको पढ़ने और सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता।
Aja Ekadashi Vrat Katha: भाद्रपद (भादो) मास के कृष्ण पक्ष में पढ़ने वाली एकादशी तिथि को अजा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह दिन भगवन विष्णु का आशीर्वाद ग्रहण करने के लिए बहुत ही उत्तम दिन है. इस दिन अजा एकादशी की कथा सुनने से भगवान् श्री हरी की कृपा सदैव बानी रहती है. इसको पढ़ने और सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता। वैसे भी हिन्दू धर्म में कथाओं का बहुत ज्यादा महत्व है भगवान् की कथाओं से हमे उनका आशीर्वाद तो मिलता ही है साथ में जीवन में सीखने के लिए बहुत कुछ मिलता है. तो चलिए सर्वप्रथम जानते है अजा एकादशी का माहात्म्य.
भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की अजा एकादशी कथा (Aja Ekadashi Vrat Katha)
युधिष्ठिर जी ने पूछा- जनार्दन ! अब मैं यह सुनना चाहता हूं कि भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में कौन सी एकादशी होती है? कृपया बताइए।
भगवान श्री कृष्ण बोले- राजन एकचित होकर सुनो। भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम “अजा” है वह सब पापों का नाश करने वाली बताई गई है। जो भगवान ऋषिकेश का पूजन करके इसका व्रत करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
पूर्व काल में हरिश्चंद्र नामक एक विख्यात चक्रवर्ती राजा थे, जो समस्त भूमंडल के स्वामी और सत्य प्रतिज्ञ थे एक समय किसी कर्म का फल भोग प्राप्त होने पर उन्हें राज्य से भ्रष्ट होना पड़ा। राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचा। फिर अपने को भी बेच दिया। पुण्यआत्मा होते हुए भी उन्हें चांडाल की दास्तान करनी पड़ी।
वह मुर्दों का कफन लिया करते थे। इतने पर भी नृपश्रेष्ठ हरिशचंद्र सत्य से विचलित नहीं हुए। इस प्रकार चांडाल की दास्तान करते उनके अनेक वर्ष व्यतीत हो गए। इससे राजा को बड़ी चिंता हुई वह अत्यंत दुखी होकर सोचने लगे – क्या करूं? कहां जाऊं? कैसे मेरा उद्धार होगा? इस प्रकार चिंता करते-करते वे शौक के समुद्र में डूब गए। राजा को आतुर जानकर कोई मुनि उनके पास आए, वे महर्षि गौतम थे।
श्रेष्ठ ब्राह्मण को आया देख नृपश्रेष्ठ ने उनके चरणों में प्रणाम किया और दोनों हाथ जोड़ गौतम के सामने खड़े होकर अपना सारा दुखमय समाचार कह सुनाया।
राजा की बात सुनकर गौतम ने कहा – राजन भादो के कृष्ण पक्ष में अत्यंत कल्याणमयी ‘आज’ नाम की एकादशी आ रही है, जो पुण्य प्रदान करने वाली है इसका व्रत करो। इसे पाप का अंत होगा। तुम्हारे भाग्य से आज के सातवें दिन एकादशी है। उस दिन उपवास करके रात में जागरण करना।
ऐसा कहकर महर्षि गौतम अंतर्धान हो गए। मुनि की बात सुनकर राजा हरिश्चंद्र ने उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया। उस उत्तम व्रत के प्रभाव से राजा सारे दुखों से पार हो गए। उन्हें पत्नी का सन्नीधान और पुत्र का जीवन मिल गया।
आकाश में दुन्दुभियाँ बज उठी देवलोक से फूलों की वर्षा होने लगी। एकादशी के प्रभाव से राजा ने अकण्टक राज्य प्राप्त किया और अंत में पुरजन तथा परिजनों के साथ स्वर्ग लोक को प्राप्त हो गए। राजा युधिष्ठिर ! जो मनुष्य ऐसा व्रत करते हैं वह सब पापों से मुक्त हो स्वर्ग लोक में जाते हैं। इसको पढ़ने और सुनने से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता.
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