Karwa Chauth Puja Vidhi: जानिए कैसे करें करवा चौथ के दिन पूजा
Karwa Chauth Puja Vidhi: अगर आपको ये पहला करवा चौथ है तो आपको इस दिन की जाने वाली पूजा की विधि जरूर पता होनी चाहिए। यहाँ देखें कारवां चौथ की सम्पूर्ण पूजा विधि।
Karwa Chauth Puja Vidhi: करवा चौथ के पावन और पवित्र त्यौहार के दिन पूजा का विशेष महवत्व होता है। इस दिन जिन भी महिलाओं को व्रत होता है उनको विधि विधान से से पूजा करनी चाहिए। हिन्दू धर्म में जितनी भी व्रत या अनुष्ठान होते हैं उनकी पूजा विधि अलग अलग होती है। ऐसे ही करवा चौथ या करक चौथ जो की हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। इस दिन भी पूजा विधि विधान से करना आवश्यक माना गया है। तो चलिए जानते है करवा चौथ की सम्पूर्ण पूजा विधि।
करवा चौथ पूजन विधि (Karwa Chauth Puja Vidhi)
सर्वप्रथम आप अनुरोध है की करवा चौथ का सम्पूर्ण पूजन सामग्री एकत्रित कर लें.
व्रत के दिन प्रातः काल उठकर स्नानादि से निवृत होने के पश्चात व्रत का संकल्प लें। कोही भी व्रत बिना संकल्प के करने से उसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है।
“मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये कर्क चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये”
पुरे दिन भर निर्जला रहें
गेरू से दीवार पर करवा का चित्र बनायें। इस चित्र को बनाने की कला को करवा धरना कहते हैं। संभव न हो तो बाजार से फोटो खरीद लें।
आठ पूरियों की अठावरी, हलवा व अन्य पकवान बनायें
पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उसकी गोद में गणेश जी बना कर बैठाएं
गौरी को लकड़ी के आसन पर बैठकर और चुनरी उड़ाकर बिंदी आदि सामग्री से गौरी का शृंगार करें।
एक जल से भरा हुआ लोटा रखें।
करवे में गेहूं भरे और उसके ढक्कन में शक्कर का बुरा भरें। और उसके ऊपर दक्षिणा रखें। और फिर रोली से करवा पर स्वस्तिक बनायें।
गौरी गणेश और करवा माता की परंपरानुसार पूजा करें। और पति की दीर्घाय और अच्छे स्वास्त्य की कामना करें।
करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। और गणेश भगवान की आरती के साथ करवा चौथ माता की आरती भी करें। तत्पश्चात करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुमाँ के पैर छूकर करवा उनको देदें।
13 दाने गेहूं के और पानी का लोटा अलग रख लें।
रति में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ दें।
इसके बाद पति से आशीर्वाद लें और पति के हाथ से जल ग्रहण करें। तत्पश्चात उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन करें।
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