Holi 2025 kab hai Date: शुभ मुहूर्तः, होलाष्टक, होलिका दहन, व कथाएँ
वर्ष 2025 मे होली की तिथि (Holi Date in 2025) क्या रहेगी, होलिक दहन का शुभ मुहूर्त क्या है, होली क्यों मनाई जाती है, कैसे मनाते है और होली का महत्व क्या है इत्यादि।
Holi 2025: होली का त्योहार भारत में मनाये जाने वाले सभी बडे़ और प्रमुख हिंदू त्योहारों में से एक है जो अत्यंत हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। हिंदू पंचाग के अनुसार रंगों का यह पर्व हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को जो आमतौर पर मार्च या अप्रैल में आता है, पारंपरिक रूप से दो दिन हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका दहन या छोटी होली के रूप में जाना जाता है। दूसरे दिन रंगवाली होली जिसे, प्रमुखतः धुलेंडी व धूलिवंदन भी कहा जाता हैं, लोग एक-दूसरे को रंग, अबीर-गुलाल लगाते हैं। आइये जानते है वर्ष 2025 मे होली (Holi 2025 Date) की तिथि क्या रहेगी, होलिक दहन का शुभ मुहूर्त क्या है, होली क्यों मनाई जाती है, कैसे मनाते है और होली का महत्व क्या है इत्यादि।
साल 2025 में होली की तिथि व शुभ मुहूर्तः (Holi 2025 Date and Time)
होली से आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू होते है जिनमें किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किये जाते है।
होलाष्टक- 07 मार्च से 13 मार्च 2025
होलिका दहन- 13 मार्च (बृहस्पतिवार) 2025 को 11ः26 से 14 मार्च 12ः30 (अवधि 01 घण्टा 04 मिनट)
रंगवाली होली- 14 मार्च (शुक्रवार) 2025
भद्रा पॅंूछ- 06ः57 से 08ः14
भद्रा मुख- 08ः14 से 10ः22
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 13 मार्च 2025 को 10ः35 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 14 मार्च 2025 को 12ः23 बजे
होली से जुड़ी पौराणिक कथाएँ (holi se judee pauraanik kathaen)
इस पर्व का वर्णन कई धार्मिक ग्रंथों जैसे नारद पुराण और भविष्य पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। भारतीय संस्कृति में हर त्यौहार के पीछे कोई न कोई कहानी होती है और होली मनाने के पीछे कई कहानियाँ इतिहास और पुराणों में मिलती हैं, जैसे हिरण्यकश्यप-प्रहिलाद की कहानी, राधा-कृष्ण की लीलाएँ आदि।
होलिका दहनः- रंगवाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन करने की परंपरा है। हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक दुष्ट असुर राजा हिरण्यकश्यप था जिसने अपने राज्य के लोगो को भगवान विष्णु की पूजा करने से मना किया था। हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रहृलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था,लेकिन राजा भगवान विष्णु को अपना शत्रु मानता था। ऐसे में जब हिरण्यकश्यप को पता चला कि उसका पुत्र प्रहृलाद विष्णु भक्त है, तो उसने उसे रोकने की कोशिश की लेकिन वह नहीं रूका। ऐसे में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका जिसका वास्तविक नाम सिंहिका था की मदद से प्रहृलाद का वध करने का षड़यंत्र रचा, क्यांेकि उसके पास यह वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती। होलिका प्रहृलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गयी, लेकिन प्रहृलाद की भक्ति और भगवान की कृपा से प्रहृलाद के शरीर को कोई भी नुकसान नहीं पहुचाँ और होलिका उस अग्नि मे जलकर भस्म हो गयी। इसी घटना के बाद सिंहिका को होलिका दहन और होली को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाये जाने लगा।
रंगवाली होलीः– रंगवाली होली को राधा कृष्ण के पावन प्रेम की याद में भी मनाया जाता है। एक कथा के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वे स्वयं राधा की तरह गोरे क्यों नहीं है। यशोदा जी ने मजाक में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग लगाने से राधा जी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा। इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली और तब से यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया और इस खुशी में गोपियों व ग्वालों ने रंग खेला था।
ब्रज की होली की छटा का आनन्द लेने के लिए लोग दूर-दराज प्रदेशों से मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, गोकुल, नन्दगॉव और बरसाना में आते हैं। बरसाना की लटृमार होली तो दुनिया भर में निराली और विख्यात है।
होलिका दहन पूजा विधि (holika dahan pooja vidhi)
होलिका दहन के लिए कुछ दिन पहले से ही लकड़ी एकतित्र करना शुरू कर दिया जाता है। पूजा में सबसे पहले गणपति जी का स्मारण किया जाता है, उसके पश्चात् होलिका पे गंगा जल का छिड़काव कर हल्दी, कुमकुम, अक्षत, गुलाल, नारियल, उपले की माला, फूल, गेहूँ की बालियां होलिका को अर्पित की जाती है। जिसके पश्चात् नरसिंह भगवान के मंत्रों का जाप कर होेलिका की परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपेट कर फिर होलिका को जल का अर्ध्य देकर होलिका दहन किया जाता है।
होली पर्व का महत्वः (Importance of Holika Dahan)
हिंदू धर्म में होली पर्व का विशेष महत्व है, होली बसंत ऋतु के आगमन तथा एक नए शुरूआत का भी प्रतीक है। इस होली के उत्सव के माध्यम से हमें एक दूसरे के मतभेदों को भुला कर एकता, भाई चारे, आपसी प्रेम और सद्भावना के साथ रहने का मौका मिलता है। इस दिन लोग ईष्या, द्वेष तथा एक दूसरे की गलती को भुलाकर गले मिलते है, साथ ही मिठाईयां खिलाकर होली की शुभकामनाएँ देते है।
यह एक संदेश है कि हमें बुराई को हराने, प्रेम को बढ़ाने और एक-दूसरे के साथ खुशियाँ बॉटने का समय हमेशा आता रहना चाहिए। हम एक नए जीवन की शुरूआत करें और प्रेम के साथ जीवन के हर पल का आनंद उठाए।
आप सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएँ।