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Pausha Putrada Ekadashi Katha: पौष पुत्रदा एकादशी महात्म्य एवं कथा

Pausha Putrada Ekadashi Katha: पौष माह की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी के दिन इस इसकी कथा अवस्य पड़ें या सुनें। पौष पुत्रदा एकादशी के दिन इसका महत्यम्य पड़ने से भगवान श्री हरी विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से संतान प्राप्ति, अयोग्य और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Pausha Putrada Ekadashi Katha: पौषमास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पौष पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। कही स्थानों पर इसको वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पौष पुत्रदा’ का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिये। जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर ‘पुत्रदा’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है!

पौष पुत्रदा एकादशी माहात्म्य

युधिष्ठिर बोले – श्री कृष्ण अपने सुभ फलदायिनी “सफला ” एकादशी का वर्णन किया। अब कृपा करके पौष शुक्लपक्ष की एकादशी का महत्व बतलाइये। उसका क्या नाम है ? इस व्रत को करने की क्या विधि है? तथा उसमे किस देवता का पूजन किया जाता है?

भगवान् श्रीकृष्णने कहा- राजन् ! पौष के शुक्ल पक्षकी जो एकादशी है, उसे बतलाता हूँ; सुनो। महाराज ! संसारके हित  की इच्छासे मैं इसका वर्णन करता हूँ । राजन् ! पूर्वोक्त विधिसे ही यत्न पूर्वक इसका व्रत करना चाहिये। इसका नाम ‘पुत्रदा’ है। यह सब पापों को हरने वाली उत्तम तिथि है। समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान् नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं। चराचर प्राणियों सहित समस्त त्रिलो की में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है।

पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Paush Putrada Ekadashi Vrat Katha)

पूर्वकाल की बात है, भद्रावती पुरीमें राजा सुकेतुमान् राज्य करते थे। उनकी रानीका नाम चम्पा था। राजा बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ। इसलिये दोनों पति-पत्नी सदा चिन्ता और शोकमें डूबे रहते थे। राजा के पितर उनके दिये हुए जल को शोकोच्छ्वा वास से गरम करके पीते थे।

‘राजा के बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हम लोगों का तर्पण करेगा’ यह सोच-सोचकर पितर दुःखी रहते थे।

एक दिन राजा घोड़े पर सवार हो गहन वन में चले गये। पुरोहित आदि किसी को भी इस बात का पता न था। मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन कानन में राजा भ्रमण करने लगे। मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनायी पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की । जहाँ-तहाँ रीछ और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे। इस प्रकार घूम-घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गया। राजा को भूख और प्यास सताने लगी। वे जल की खोज में इधर-उधर दौड़ने लगे। किसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियों के बहुत-से आश्रम थे। शोभाशाली नरेश ने उन आश्रमों की ओर देखा। उस समय शुभ की सूचना देने वाले शकुन होने लगे। राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फल की सूचना दे रहा था। सरोवर के तटपर बहुत-से मुनि वेदपाठ कर रहे थे। उन्हें देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ । वे घोड़े से उतर कर मुनियों के सामने खड़े हो गये और पृथक्-पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे। वे मुनि उत्तम व्रत का पालन करने वाले थे। जब राजा ने हाथ जोड़कर बारम्बार दण्डवत् किया, तब मुनि बोले- ‘राजन् ! हमलोग तुमपर प्रसन्न हैं।

Paush Putrda Ekadashi katha
Paush Putrda Ekadashi katha

राजा बोले- आपलोग कौन हैं? आप के नाम क्या हैं तथा आप लोग किसलिये यहाँ एकत्रित हुए हैं? यह सब सच-सच बताइये ।

मुनि बोले- राजन् ! हमलोग विश्वेदेव हैं, यहाँ स्नानके लिये आये हैं। माघ निकट आया है। आजसे पाँचवें दिन माघका स्नान आरम्भ हो जायगा। आज ही ‘पुत्रदा’ नामकी एकादशी है, जो व्रत करनेवाले मनुष्यों को पुत्र देती है।

राजा ने कहा – विश्वेदेवगण! यदि आपलोग प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये।

मुनि बोले- राजन् ! आजके ही दिन ‘पुत्रदा’ नामकी एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो। महाराज! भगवान् केशव के प्रसादसे तुम्हें अवश्य पुत्र प्राप्त होगा।

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं—युधिष्ठिर! इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उत्तम व्रत का पालन किया। महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी का अनुष्ठान किया। फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारम्बार मस्तक झुका कर राजा अपने घर आये । तदनन्तर रानी ने गर्भ धारण किया। प्रसव काल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणोंसे पिताको संतुष्ट कर दिया। वह प्रजाओंका पालक हुआ। इसलिये राजन्! ‘पुत्रदा’ का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिये। मैंने लोगों के हित के लिये तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है। जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर ‘पुत्रदा’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्युके पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है!

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