Raksha Bandhan 2025: तिथि व शुभ मुहूर्त (रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कथाएं)
Raksha Bandhan 2025: Janiye sal 2025 me Raksaha Bandhan ki date kya hai, kab hai Rakshan bandhan or is din se judi katha or Shubh muhurat ki jankari.
Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन भाई और बहन के अटूूट बंधन का त्यौहार है, जो भारत में बहुत ही प्यार और उल्लास के साथ मनाया जाता है। रक्षाबंधन के दिन बहनंे अपने भाईयों की कलाई में राखी बाँधती है तथा उनकी लम्बी उम्र की प्रार्थना करती है। यह पर्व सावन माह की पूर्णिमा तिथि को जो आमतौर में अगस्त महीने में मनाया जाता है। वर्ष 2025 मे रक्षाबंधन (Raksha Bandhan 2025 Date) किस तिथि को मनाया जायेगा, राखी बांधने का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा, रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है तथा इससे सम्बन्धित पौराणिक कथायें इत्यादि।
साल 2025 में रक्षाबन्धन की तिथि व शुभ मुहूर्तः (Raksha Bandhan 2025 Date)
चलिए जानते हैं साल 2025 में रक्षाबंधन कब है और क्या है राखी बांधने का शुभ मुहूर्त।
रक्षाबंधन की तिथि 09 अगस्त (शनिवार)
राखी बॉधने का शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 46 मिनट से 01 बजकर 26 मिनट तक (अवधि 07 घंटे 40 मिनट)
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ 08 अगस्त दोपहर 02 बजकर 13 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त 09 अगस्त दोपहर 01 बजकर 26 मिनट तक
रक्षाबंधन कैसे मनायेंः (How To Celebrate Raksha Bandhan in 2025)
रक्षा करने व करवाने के लिए जो धागा बॉधा जाता है, प्रेम के साथ, मंत्र के साथ, भावना के साथ उस धागे को उस पवित्र बंधन को रक्षाबंधन या रक्षासूत्र कहते है। रक्षाबंधन के दिन बहनें सुबह उठकर स्नान आदि कर तब तक भोजन ग्रहण नहीं करती जब तक भाई की कलाई पर राखी न बॉध ले। बहनें अपनी थाल को रोली, अक्षत, कुमकुम, फूल, मिष्ठान, दिया, राखी आदि सामग्री से सजाती है तथा शुभ मुहूर्त पर भाई की आरती उतारती है उसके बाद तिलक कर कलाई पर राखी बॉधती है उन्हे मिष्ठान खिलाती है। आर्शीवाद के रूप में लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती है और उसका जीवन सदैव खुशहाल रहें, उसे किसी प्रकार की कठिनाईयों का सामना न करना पड़े। भाई भी अपने बहनों को उपहार व उनकी रक्षा का वचन देते है। यह भाई और बहनों के प्यार का त्योहार है।
रक्षाबंधन से जुड़ी पौराणिक कथाएं-
हिन्दु पुुराणों मे रक्षाबंधन मनाने से सम्बन्धित कई कथायें प्रचलित है जिनमे सार्वाधिक प्रसिद्व कुछ कथाओं का वर्णन इस प्रकार हैः-
1- विष्णु पुराण में बताया गया है असुरो के राजा बलि (प्रहलाद के पौत्र तथा विष्णु भक्त थे) ने अपने बल और पराक्रम से तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था जिसे देखकर इन्द्र देवता घबराकर भगवान विष्णु के पास सहायता माँगने पहुँचे। इन्द्र के मदद माँगने पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया और राजा बलि से भिक्षा माँगने पहुँच गए। वामन भगवान ने भिक्षा में तीन पग भूमि माँगीं। बलि ने यह स्वीकर कर लिया और विष्णु जी ने वामन अवतार के रूप को विशाल कर एक पग में सारी धरती को नाप लिया दूसरे पग में समस्त आकाश को नाप लिया तथा तीसरा पग रखने के लिए जब कुछ नहीं बचा तो भगवान विष्णु ने राजा बलि से कहा मैं अपना तीसरा पग कहा रखूॅ कोई जगह शेष नहीं बची इस पर बलि ने कहा कि वह तीसरा पग उनके सिर पर रख दें। वामन भगवान ने अपना पग उनके सिर पर रखा और राजा बलि पाताल लोक पहॅुच गया। विष्णु जी ने कहा अब यही तुम्हारा राज्य होगा। राजा बलि के दान धर्म और निष्ठा से प्रसन्न होकर विष्णु जी ने उन्हें वरदान मॉगने को कहा राजा बलि ने उन्हें सदा उनके साथ पाताल लोक रहने का वरदान मॉग लिया। विष्णु जी पाताल लोक में राजा बलि के द्वारपाल के रूप में रहने लगे। भगवान विष्णु के पाताल लोक जाने के बाद सभी देवतागण व माता लक्ष्मी चिन्ता में पड़ गए। माता लक्ष्मी को नारद जी से इसका समाधान मिला और उन्होंने गरीब महिला का रूप लेकर राजा बलि की कलाई में रक्षासूत्र बॉधकर उन्हें अपना भाई बना लिया और राजा बलि द्वारा उपहार मे कुछ मॉगने पर देवी लक्ष्मी अपने रूप में आ गई और उन्होनें भगवान विष्णु को पाताल लोक से वापस ले जाने का वचन ले लिया। बलि ने विष्णु जी को जाने दिया परन्तु भगवान विष्णु ने राजा बलि को वरदान दिया कि वह हर साल 4 महीने के लिये पाताल में ही निवास करेेेेंगे। यह 4 माह चर्तुमास के रूप में जाना जाता है जो देवशयनी एकादशी से लेकर देवउठानी एकादशी तक होता है।
2- महाभारत की कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अपने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध करने के बाद जब चक्र श्रीकृष्ण के पास वापस आया तो उनकी उगॅली पर चोट आ गई जिसे देखकर पाण्डवों की पत्नी द्रोपदी ने अपनी साड़ी का किनारा चीरकर कृष्ण जी की उंगली पर बॉध दिया था तब भगवान श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को सारी उम्र उनकी रक्षा करने का वचन दिया। श्रीकृष्ण ने अपने वचन के अनुसार चीरहरण के समय द्रोपदी की रक्षा की थी।
3- भविष्य पुराण के अनुसार देवता ओर असुरो के बीच 12 वर्षो तक युद्व चलता रहा। देवता इस युद्व में हार रहे थे। यह देखकर देवताओं के राजा देवराज इन्द्र गुरू वृहस्पति के पास गये जहॉ उनकी पत्नी शचि भी मौजूद थी। पति की यह दशा देखकर उन्होंने इन्द्र से कहा कि मैं विधिविधान से रक्षासूत्र आपके लिए तैयार करूॅगी। आपकी निश्चय ही विजय होगी। अगले दिन देवी शचि ने वह रक्षासूत्र इन्द्र को बाँध दिया जिससेे इन्द्र व सभी देवताओ की रक्षा हुई।
यह त्योहार भाई और बहन के बीच अटूट व धर्म का प्रतीक है। इस त्योहार का मुख्य उद्धेश्य भाई-बहन के बीच के रिश्तों को बजबूत करना व परिवार के मूल्यों को बढ़ाना है।