Chaitra Navratri 2025: जाने डेट व शुभ मुहूर्त (Kab Hai Chaitra Navratri)
Chaitra Navratri 2025 Date and Shubh Muhurat. 2025 में चैत्र नवरात्रि कब से शुरू हो रही है, कब समाप्त होगी, पूजा व कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा, इसे मनाने का कारण क्या है तथा इसके पीछे की कथा क्या है आदि।
Chaitra Navratri 2025: नवरात्रि, हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है जो नौ दिनों तक मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा करने के लिये मनाया जाता है। पंचाग के अनुसार श्री दुर्गा जी की पूजा विशेष रूप से वर्ष में दो बार की जाती है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से आरम्भ होने वाले नवरात्र वार्षिक कहलाते है और आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को जो नवरात्र प्रारम्भ होते हैं, उन्हें शारदीय नवरात्र कहते है। दोनों का अपना-अपना धार्मिक महत्व है। वार्षिक नवरात्र चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मार्च या अप्रैल के महीने में मनाया जाता है। यह गर्मियों के मौसम के शुरूआत का भी प्रतीक है। 2025 में चैत्र नवरात्रि कब से शुरू हो रही है, कब समाप्त होगी, पूजा व कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा, इसे मनाने का कारण क्या है तथा इसके पीछे की कथा क्या है आदि।
चैत्र नवरात्र का प्रारम्भ व कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त (Chaitra Navratri 2025 Date and Shubh Muhurat)
30 मार्च (रविवार) पहला दिन शैलपुत्री पहाडों की पुत्री
31 मार्च (सोमवार) दूसरा दिन ब्रह्नाचारिणी तपस्या और ज्ञान की देवी
31 मार्च (सोमवार) दूसरा दिन चंद्रघंटा शक्ति और साहस की देवी
01 अप्रैल (मंगलवार) तीसरा दिन कुष्मांडा ब्रह्नाांड की रचना करने वाली देवी
02 अप्रैल (बुधवार) चौथा दिन स्कंदमाता कार्तिकेय की माता
03 अप्रैल (गुरूवार) पांचवा दिन कात्यायनी महिषासुर का वध करने वाली देवी
04 अप्रैल (शुक्रवार) छठा दिन कालरात्रि बुराई का नाश करने वाली देवी
05 अप्रैल (शनिवार) सातवॉ दिन महागौरी शांति और सौंदर्य की देवी।
06 अप्रैल (रविवार) आठवॉं दिन सिद्धदात्री सभी सिद्धियों को प्रदान करने वाली देवी
नवरात्रि से जुड़ी पौराणिक कथा और महत्व (Chaitra Navratri Katha)
हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार, प्राचीन काल में असुरराज महिषासुर ने अपने अत्याचारों से तीनों लोकों को परेशान कर रहा था। उसने देवता और मनुष्यों पर अत्याचार किए जिससे परेशान होकर देवताओं ने माता पार्वती की शरण लीं। माता पार्वती ने देवताओं और मनुष्यों के कल्याण के लिए अपने तेज से नौ स्वरूप प्रकट किए। प्रत्येक स्वरूप विशिष्ट शक्तियों और विशेषताओं से युक्त था। नौ दिनों तक देवताओं ने माता के प्रत्येक स्वरूप की श्रद्धापूर्वक पूजा की और उन्हे शक्ति प्रदान की। अंततः नौवें दिन भयंकर युद्ध के बाद माता दुर्गा ने महिषासुर का वध कर दिया। इस विजय को सत्य और धर्म की स्थापना माना जाता है। चैत्र नवरात्रि इसी विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
यह कथा हमें कई महत्वपूर्ण संदेश देती है। सबसे महत्वपूर्ण संदेश है सत्य की विजय। भले ही बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो अंततः सत्य की ही विजय होती है। साथ ही यह कथा कर्मठता और दृढ़ इच्छाशक्ति की महत्ता का भी संदेश देती है। इसके अतिरिक्त यह भी माना जाता है कि रावण से युद्ध से पहले श्रीराम जी ने युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए देवी दुर्गा की उपासना की थी।
चैत्र नवरात्र पूजा और अनुष्ठान (Chaitra navratri 2025 Puja and Kalas Stapna)
नवरात्र यानी माँ अंबे के नौ रूपों की आराधना में डूब जाने के खास नौ दिन। चैत्र नवरात्रि धार्मिक ही नहीं सांस्कृतिक उत्सव भी है। नवरात्रि के पहले दिन शुभ मुहूर्त में कलश या घट स्थापना करनी चाहिए नवरात्रि के पहले दिन स्नान आदि से शुद्ध होकर व्रत का संकल्प लें। पूजा स्थान मे श्री दुर्गा जी की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए। मूर्ति के दाहिने ओर कलश स्थापना करनी चाहिए। कलश के ठीक सामने मिटृी से भरे बर्तन में जौ बोने चाहिए। कलश में रोली से स्वास्तिक बना लें। कलश के ऊपरी भाग में कलावा बॉध ले। अब कलश के ऊपर अशोक या आम के 5 या 7 पत्ते रखें। कलश में हल्दी का गोठ, सिक्का, सुपारी व दूब डाल दे।
इसके बाद एक नारियल को लाल कपड़े में लपेटकर कलश के ऊपर स्थापित कर दें। इस तरह घटस्थापना पूर्ण होने के बाद सर्वप्रथम गणेश जी और समस्त देवी देवताओं का ध्यान करें उसके बेाद श्री जगदम्बा की पूजा करें।
नौ दिनों तक माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधि विधिविधान से पूजा की जाती है। भक्त उपवास रखते हैं, दुर्गा सप्तशती का पाठ करते है, सुबह-शाम मंदिर जाते हैं, पूजा पाठ करते हैं और अष्टमी व नवमी तिथि को कन्या पूजन का आयोजन करते हैं। धार्मिक भजनों और मंत्रो का जाप किया जाता है। वहीं, कुछ क्षेत्रों में जैसे गुजरात में रंगारग वस्त्र पहनकर गरबा और डांडिया जैस लोक नृत्यों का आयोजन किया जाता है। ये नृत्य उत्सव और उमंग का वातावरण बनाते हैं। चैत्र नवरात्रि का समापन रामनवमी के दिन होता है।
नवरात्रि का महत्व
इस पर्व का सामाजिक महत्व भी कम नहीं है। कन्या पूजन के माध्यम से समाज में कन्याओं को सम्मान और आदर दिया जाता है और पहले दिन जौ के बौने का भी अपना महत्व है वह यह कि शक्ति रूपी मां भगवती सबको अन्न, धन और आरोग्य की कृपा से अविभूत करें अपना आर्शीवाद दें।
नवरात्रि पर्व के दौरान होने वाले भंडारों और सामुदायिक भोजों में लोग एकत्र होकर मिल-जुुलकर भोजन करते हैं, जिससे सामाजिक सरोकार और सौहार्द का भाव मजबूत होता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और यह भक्तों को शक्ति और सुख समृद्धि प्रदान करता है।
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Jai Mata Di..