हिन्दू त्यौहार

Chhath Puja 2025: जानें महत्व, डेट, पूजा मुहूर्त, पूजा विधि

Chhath Puja 2025: जानिए साल 2025 (Chhath Puja 2025) में कब है छठ पूजा, क्यों और कब से मनाया जा रहा है ये पवित्र त्यौहार। छठ पूजा का महत्व और इस पर्व से जुडी तमाम जानकारियां।

Chhath Puja 2025: छठ पूजा अधिकतर बिहार, झारखण्ड व पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिन्दू त्योहार है। इसे सूर्य षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सूर्य की पूजा की जाती है। यह एक ऐसा अवसर है जहाँ उगते सूर्य के साथ-साथ डूबते सूर्य की पूजा की जाती है तथा दूध से अर्ध्य दिया जाता है। हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार यह पर्व कार्तिक माह की षष्ठी तिथि तथा अग्रेजी कैलेण्डर के अक्टूवर या नवम्बर माह में मनाया जाता है। छठ पूजा एक ऐसा त्योहार है जो मनुष्य और प्रकृति के बीच सम्बन्ध, विश्वास और दृढ़ता की शक्ति का जश्न मनाता है। तो आईये जानते है 2025 में छठ पूजा किस दिन हैै, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या होगा, इसकी पूजा विधि और इसका महत्व क्या है।

Chhath Puja 2025: Date and Time

पूजा की तिथि व समयः- छठ पूजा की तिथि 27 अक्टूवर को है। षष्ठी तिथि प्रारम्भ होगी 27 अक्टूवर सुबह 06ः05 मिनट से और समाप्त होगी 28 अक्टूवर सुबह 08ः00 बजे । 28 अक्टूवर को सूर्य को अर्ध्य देने का समय शाम 05ः39 मिनट पर है।

किस प्रकार की जाती है छठ पूजा ? (Chhath Puja Vidhi)

भारत अपनी पारंपरिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है। यह त्योहार 04 दिनों तक चलता है जिसमें सख्त अनुष्ठान शामिल होते है। इसमें प्रत्येक दिन का अपना महत्व है, जो इस प्रकार है।

पहला दिनः- छठ पर्व के पहले दिन को नहाय-खाय कहा जाता है। इस दिन घर की अच्छी तरह से सफाई की जाती है। किसी भी पवित्र नदी में स्नान या डुबकी लगायी जाती है। सात्विक भोजन दाल रोटी, फल और दूध ग्रहण किया जाता है।

दूसरा दिनः छठ पर्व के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। भक्त दिन भर अन्न जल का त्यागकर उपवास रखते है जिसे देर शाम धरती माता की पूजा करने के बाद तोड़ा जाता है। शाम को गेहूं, गुड और दूध से खीर बनाई जाती है जिसे भगवान सूर्य को भोग लगाने के बाद ग्रहण किया जाता  है।

तीसरा दिनः- छठ पर्व के तीसरे दिन को संध्या अर्ध्य कहा जाता है। शाम के समय बड़ी संख्या में श्रद्वालुओं द्वारा नदियों के तट पर एकत्र होकर डूबते सूर्य को दूध का अर्ध्य दिया जाता है। नदी या तालाब के किनारे सूप में फल, एक मीठा गेहूं का प्रसाद और अन्य पूजा सामग्री सूर्य देव को अर्पित किया जाता है। बिहार की संस्कृति और इतिहास को प्रदर्शित करते हुए लोकगीत बजाए जाते है। तीसरे दिन की रात एक रंगारग कार्यक्रम किया जाता है जिसे कोसी के नाम से जाना जाता है। गन्ने की लकड़ियों से एक छत्र बनाया जाता है और उस छत्र के अंदर प्रसाद से भरी टोकरियों के साथ जलते हुए मिटृी के दीपक रखे जाते है।

चौथा दिनः- छठ के चौथे दिन को उषा अर्ध्य या भोर का अरघ भी कहा कहा जाता है। चौथे और अन्तिम दिन परिवार के सदस्य और दोस्त सूर्योदय से पहले नदियों के किनारे जाते है और उगते सूर्य को दूध का अर्ध्य देते है। छठी माता की पूजा की जाती है और उनसे पूरे परिवार को बिमारियों से बचाने की प्रार्थना करते है। इस अनुष्ठान के बाद भक्त अपना उपवास तोड़ते है और सबको प्रसाद वितरित करते है और अंत में वे घर पर बना प्रसाद खाकर व्रत तोड़ती है।

छठ पूजा की शुरूआत

इस त्योहार की शुरूआत कैसे हुई इसके बारे में कई कहानियाँ है जो इस तरह है

1- यह पूजा प्रारंभिक काल से चली आ रही है और पूजा के दौरान ऋग्वेद के मंत्रों का जाप किया जाता था।

2- माता अदिति ने कार्तिक मास की षष्ठी तिथि को सूर्य को पुत्र के रूप में जन्म दिया था। अदिति के पुत्र होने के कारण सूर्य को आदित्य कहा जाता है।

3- माता सीता ने मुंगेर के सीताचरण मंदिर में छठ पर्व मनाया था इसके बाद ही छठ पर्व की शुरूआत मुंगेर-वेगुसराय से मानी जाती है।

4- किवदंतियों के अनुसार जब पांडव अपना सब कुछ हार गये थे तब श्रीकृष्ण द्वारा इस व्रत को बताये जाने पर द्रोपदी ने अपने जीवन की बाधाओं को दूर करने और अपने खोए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिए यह व्रत और पूजा की थी।

छठ पर्व का महत्व

यह भगवान सूर्य का त्योहार है और सूर्य के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए यह मनाया जाता है। यह दिन इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन सूय की किरणें सबसे अधिक पवित्र मानी जाती है। सूर्य पृथ्वी पर सभी प्राणियों के जीवन के सबसे बड़े स्त्रोत का आधार है। इस दिन अगर सूर्य को समर्पण और भक्ति के साथ ‘अर्ध्य’ दिया जाए तो सूर्य भगवान मनोकामनाएँ पूर्ण करते है। छठ पर्व में छठी माता की भी पूजा की जाती है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार छठी माता सूर्य की बहन और माता पार्वती का छठा रूप मानी जाती है। छठी मैया बच्चों की बिमारियों और समस्याओं से रक्षा करती है और उन्हें लम्बी उम्र व अच्छा स्वास्थ्य प्रदान करती हैै।

इस पर्व का उद्देश्य पृथ्वी पर लगातार ऊर्जा प्रदान और लोगों को रहने के लिए उपयुक्त वातावरण प्रदान करने के लिए सूर्यदेव को धन्यवाद व्यक्त करना।

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