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Diwali 2025: Kab hai, Date, Subh Muhurat, Laxmi Puja Time

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Diwali 2025: दीपावली, जिसे हम प्यार से दिवाली भी कहते है। भारत के सबसे बडें और सर्वाधिक महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। दीवाली को रोशनी का त्योहार कहा जाता है। पांच दिवसीय दिवाली का पर्व हिन्दू कैलेन्डर के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को अक्टूवर या नवंबर माह में मनाया जाता है, इस पांच दिवसीय पर्व में धनतेरस, छोटी दिवाली, दिवाली, गोवर्धन और भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। आइये जानते है कि 2025 में दिवाली कब है, किस तिथि को है, लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है, तथा दिवाली क्यों मनायी जाती है, इत्यादि।

Diwali 2025 Date and Subh Muhurat

दिपावाली की तिथि व लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्तः- कार्तिक मास में अमावस्या के दिन प्रदोष काल में लक्ष्मी पूजन किया जाना चाहिए।

तिथि: (Diwali 2025 Date)- 21 अक्टूवर मंगलवार

लक्ष्मी पूजा मुहूर्तः- शाम 05 बजकर 46 मिनट से 05 बजकर 56 मिनट

अवधि- 10 मिनट

प्रदोष कालः- शाम 05 बजकर 46 मिनट से 8 बजकर 17 मिनट 59 सेकेण्ड तक

वृषभ कालः- रात्रि 07 बजकर 05 मिनट 45 सेकेण्ड से 09 बजकर 01 मिनट 39 सेकेण्ड तक

दीपावली दिवस का क्या अर्थ हैः

दीपावली दिवस का अर्थ है ‘‘दीपों की पंक्ति का दिन’’। दीप का शाब्दिक अर्थ होता है दीपक या दिया,  और आवली का शाब्दिक अर्थ होता है पंक्ति या लाइन। इस दीपावली के मौके पर दीपकों को लाईन से लगाकर घर को रोशन किया जाता है। दिवाली भारत का सबसे बड़ा धार्मिक और महत्वपूर्ण त्योहार है जो अंधेरे पर प्रकाश की विजय और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाता है।

दिवाली का इतिहासः

भारत में प्राचीन काल से दीपावली को विक्रम संवत के कार्तिक माह में गर्मी की फसल के बाद के एक त्योहार के रूप में दर्शाया गया है। पद्म पुराण और स्कन्द पुराण में दीपावली का उल्लेख मिलता है। स्कन्द पुराण में दियें को सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है। दीपावली का इतिहास रामायण व अन्य पौराणिक कथाओं से भी जुड़ा हुआ है। उत्तर भारत में मिटृी के दीयों को जलाकर रावण को हरानेे के बाद राजा राम की अयोध्या वापसी की कहानी का जश्न मनाते है। दक्षिणी भारत में इसे उस दिन के रूप में मनाता है जब भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर को हराया था। पश्चिमी भारत मे यह त्योहार उस दिन को बताता है जब भगवान विष्णु ने राक्षस राजा बाली को पाताल लोक पर शासन करने के लिए भेजा था।

दिवाली पर लक्ष्मी-गणेश पूजा क्यों की जाती है?

भारतीय परम्परा का मानना है कि देवी महालक्ष्मी दिवाली के दिन भाग्य, धन और कई अन्य आर्शीवाद लेकर हर घर में आती है। दिवाली पर दिवाली पूजा करने से देवी महालक्ष्मी का आर्शीवाद प्राप्त करने में मदद मिलती है और घर में समृद्धि, धन, स्वास्थ्य और प्रचुरता को आमंत्रित किया जा सकता है। दिवाली की पूर्व संध्या पर देवी लक्ष्मी, भगवान गणेश, माता सरस्वती की पूजा के साथ-साथ कुबेर की भी पूजा की जाती है

दीपावली के त्योहार की तैयारियाँः

दीपावाली आमतौर पर पांच दिनों दिनों तक चलने वाला त्योहार है। इस त्योहार से पहले हम अपने घरों की अच्छे से साफ-सफाई करते है उन्हें रंग-बिरंगी रंगोलियों, गेंदे की मालाओं और कई रोशनियों से सजाते हैं और स्वादिष्ट मिठाईया और अन्य व्यंजन बनाते है। दीपावली रोशनी के इस पावन त्योहार का मुख्य दिन है। इस दिन धन-सम्दा और समृद्धि का आर्शीवाद पाने के लिए मां लक्ष्मी व भगवान गणेश की पूजा की जाती है। त्योहार के प्रत्येक दिन का अपना खास महत्व है। आइए पांच दिनों तक चलने वाले सभी त्योहारों के बारे में जानते हैः-

धनतेरसः- यह पहले दिन मनाये जाने वाला उत्सव है। धनतेरस शब्द का अर्थ ही धन और समृ़िद्ध है। धनतेरस हिन्दी पंचाग के अनुसार कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और इसे धन त्रयोदशी भी कहा जाता है। इस दिन लोग विशेषकर सोने और चांदी के आभूषण, नए वाहन की खरीदारी तथा बर्तन आदि खरीदते हैं, जिसे शुभ माना जाता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है।

नरक चतुर्दशी या छोटी दिवालीः- यह त्योहार का दूसरा दिन है। यह पर्व भारतीय समुदाय में खुशियोें और पौराणिक कथाओं के साथ मनाया जाता है। एक कथा के अनुसार नरकासुर नामक राक्षस ने देवता तथा साधु संतों को परेशान किया हुआ था तथा 16 हजार स्त्रियों को बंदी बना लिया था जिस कारण भगवान श्री कृष्ण ने कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुुर को मारकर देवता व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई , साथ ही 16 हजार स्त्रियों को कैद सेे मुक्त करवाया। नरकासुर की मृत्यु के बाद लोगों ने अपने घरों को दीपों से सजाकर उजाला किया। इस दिन लोग अपने जीवन से सभी पापों और अशुद्धियों को दूर करने के लिए सुबह जल्दी उठते हैं और स्नान आदि कर पूजा-पाठ करते है।

दीवाली या दीपावलीः- तीसरा दिन रोशनी के इस पावन त्योहार का मुख्य दिन है जो बुराई पर अच्छाई और अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। माना जाता है कि इस दिन भगवान राम रावण का वध करने के पश्चात् माता सीता व भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या वापस लौटे थे। भगवान राम के स्वागत के लिए उस दिन अयोध्यावासियों ने पूरी अयोध्या को दीयों से सजाया था और तभी से दिवाली मनायी जाने लगी।

दिवाली के दिन समृद्धि, भाग्य, धन-सम्पदा और कई अन्य आर्शीवाद पाने के लिए मां लक्ष्मी और गणेश जी की पूजा के साथ-साथ माता सरस्वती व भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है। लोेग नए कपड़े पहनते है, घर-आंगन में दिये जलाते है, अपने परिवार और दोस्तों को मिठाईया उपहार में देते है तथा पटाखे फोड़कर आनंद लेते है।

गोवर्धन पूजाः- यह पर्व चौथे दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने विशाल गोवर्धन पर्वत को सात दिनों तक अपनी छोटी उंगली पर उठाकर ब्रज वासियों की तेज वर्षा से रक्षा की थी तथा इंद्र के घमण्ड को तोड़ा था। इस कारण गोवर्धन पूजा के दिन गाय के गोबर का उपयोग करके, लोग गोवर्धन का प्रतीक एक छोटा टीला बनाते है और उसकी पूजा करते है तथा भगवान कृष्ण के आदर्शो को अपनाने का संकल्प लेते है। यह पूजा भक्ति और धर्म की भावना को बढ़ावा देती है और लोगो को सहयोग और सामर्थ्य की भावना देती है।

भाई दूजः– दिवाली के पांचवे व अन्तिम दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीय को भाई दूज मनाया जाता है जो भाई बहन के प्रेम का प्रतीक है। इसे यम द्वितीय भी कहा जाता है। हिन्दू पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय देवता यमराज अपनी बहन यमुना से मिलने गोलोक गयेे। जहॉ उनकी बहन ने अच्छी तरह से उनका स्वागत किया और तिलक लगाकर उन्हें भोजन करवाया। यमराज यह देखकर बहुत खुश हुए इसके परिणामस्वरूप भाई-बहन के बीच में एक विशेष बंधन बना और भाई दूज की परम्परा शुरू हुई। भाई दूज के दिन भाई बहन के घर जाकर भोजन करता है। बहन अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर अपने भाई की लंबी और खुशहाल जिंदगी के लिए प्रार्थना करती है।

दिवाली का पर्व खुशियों और हर्षोल्लास से मनाए जाने वाला त्योहार है। यह पर्व अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है । यह हमें जीने का उत्साह प्रदान करता है। दिवाली हमें एकता और शांति का महान पाठ पढ़ाती है।

          आप सभी को हार्दिक और सुरक्षित दिवाली की शुभकामनायें।

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