आरतियां

Ekadashi Aarti: एकादशी माता की आरती, इसके बिना अधूरा है इस दिन का पूजा पाठ

Ekadashi Mata Aarti: एकादशी तिथि के पवित्र और पावन तिथि में एकादशी माता की आरती जरूर करनी चाहिए, तभी इस दिन की पूजा, व्रत जप, तप पूर्ण माना जाता है.

Ekadashi Aarti Lyrics: एकादशी तिथि का हिन्दू पंचांग में बहुत महत्व है। एकादशी तिथि यानि की हिन्दू पंचांग का ग्यारवां दिन। यह पवित्र दिन भगवान् श्री हरी विष्णु के लिए समर्पित है। इस दिन भगवान् श्री हरी विष्णु की पूजा करने से कही गुना अधिक फल मिलता है और पापों का नाश होता है। इस दिन एकादशी माता की आरती करना भी अति आवश्यक होता है।

Ekadashi Aarti (एकादशी माता की आरती)

ॐ जय एकादशी, जय एकादशी, जय एकादशी माता।
विष्णु पूजा व्रत को धारण कर, शक्ति मुक्ति पाता॥ ॐ

तेरे नाम गिनाऊं देवी, भक्ति प्रदान करनी।
गण गौरव की देनी माता, शास्त्रों में वरनी॥ ॐ

मार्गशीर्ष के कृष्णपक्ष की उत्पन्ना, विश्वतारनी जन्मी।
शुक्ल पक्ष में हुई मोक्षदा, मुक्तिदाता बन आई॥ ॐ

पौष के कृष्णपक्ष की, सफला नामक है।
शुक्लपक्ष में होय पुत्रदा, आनन्द अधिक रहै॥ ॐ

नाम षटतिला माघ मास में, कृष्णपक्ष आवै।
शुक्लपक्ष में जया, कहावै, विजय सदा पावै॥ ॐ

विजया फागुन कृष्णपक्ष में शुक्ला आमलकी।
पापमोचनी कृष्ण पक्ष में, चैत्र महाबलि की॥ ॐ

चैत्र शुक्ल में नाम कामदा, धन देने वाली।
नाम बरुथिनी कृष्णपक्ष में, वैसाख माह वाली॥ ॐ

शुक्ल पक्ष में होय मोहिनी अपरा ज्येष्ठ कृष्णपक्षी।
नाम निर्जला सब सुख करनी, शुक्लपक्ष रखी॥ ॐ

योगिनी नाम आषाढ में जानों, कृष्णपक्ष करनी।
देवशयनी नाम कहायो, शुक्लपक्ष धरनी॥ ॐ

कामिका श्रावण मास में आवै, कृष्णपक्ष कहिए।
श्रावण शुक्ला होय पवित्रा आनन्द से रहिए॥ ॐ

अजा भाद्रपद कृष्णपक्ष की, परिवर्तिनी शुक्ला।
इन्द्रा आश्चिन कृष्णपक्ष में, व्रत से भवसागर निकला॥ ॐ

पापांकुशा है शुक्ल पक्ष में, आप हरनहारी।
रमा मास कार्तिक में आवै, सुखदायक भारी॥ ॐ

देवोत्थानी शुक्लपक्ष की, दुखनाशक मैया।
पावन मास में करूं विनती पार करो नैया॥ ॐ

परमा कृष्णपक्ष में होती, जन मंगल करनी।
शुक्ल मास में होय पद्मिनी दुख दारिद्र हरनी॥ ॐ

जो कोई आरती एकादशी की, भक्ति सहित गावै।
जन गुरदिता स्वर्ग का वासा, निश्चय वह पावै॥ ॐ

ekadashi ki aarti

आरती करते समय ध्यान रखने वाली बातें

  • अगर स्वस्थ है तो नहा कर घर के मंदिर में जाएँ अन्यथा पंच्स्नान भी कर सकते हैं। दिन भर के लिए फिर आप कभी भी जा सकते हैं। लेकिन सुबहा प्रथम बार नहा के दर्शन करें।
  • सर्वप्रथम दिया जलाए, चन्दन सिंदूर लगाएँ, फिर जो आपके हाथ में सिंदूर रह गया अपने माथे में लगाएँ, भगवान वाला सिंदूर ले कर न लगाएँ।
  • फिर भगवान को भोग लगाएँ ओर उनसे प्रसाद/ भोजन ग्रहण करने की विनती करें। फिर आरती करें।
  • आरती को घड़ी की सुई की दिशा में घूमना चाहिए। जब तक आरती हो तब तक घुमाएं।
  • आरती के समय भगवान के एकदम सामने खड़े न हों , थोड़ा किनारे हो जाएँ।
  • आरती होने के बाद भगवान से छमा याचना करें की कोई गलती हो गई हो तो छमा करें।
  • आरती करते समाय अपने मन को काबू में रखें, हर समय भगवान से कुछ न कुछ मांगना अच्छा नहीं।
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