Ekadashi Vrat: एकादशी व्रत कैसे शुरू करें, व्रत की विधि, पारण, उद्यापन विधि
Ekadashi Vrat: Ekadashi Vrat ki sampurn jankari: Ekadashi Mata ki Katha, Hindu Calendar ki sabhi Ekadashi Tithiyon ke Nam. Ekadashi Vrat kaise karen, Ekadashi Vrat ka Paran Kaise karen, ekadashi vrat udyapan ki vidhi, is din kya khayen or kya nahi.
Ekadashi Vrat: हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का अत्यधिक महत्व है। यह तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन भक्त एकादशी का व्र्रत रखते है और भगवान विष्णु की पूजा करते है। प्रत्येक हिन्दू मास में दो एकादशी तिथि होती है जिनमें पहली कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष। वर्ष में 24 एकादशी होती है जिस वर्ष अधिकमास या मलमास होता है उस वर्ष 26 एकादशी होती है। सभी एकादशी का अपना नाम व महत्व होता है। इस व्रत को रखने का विशेष महत्व माना जाता है। आईये जानते है एकादशी व्रत क्या है, क्यों किया जाता है, इसकी विधि क्या है, 24 एकादशी कौन-कौन सी है तथा व्रत से सम्बन्धित सभी नियम।
एकादशी की कथा (Ekadashi Vrat katha)
हिन्दू धर्म ग्रंथ पद्म पुराण के अनुसार सतयुग में मुर नाम के एक राक्षस ने पृथ्वी लोक के सभी मानव, साधु संत व देवताओं को भी भयभीत किया हुआ था। सभी देवता विष्णु जी की शरण में रहने लगें। सभी की रक्षा हेतु विष्णु जी ने मुर राक्षस के साथ 1000 वर्षो तक युद्व किया किन्तु वह पराजित नहीं हुआ। जिस पर विष्णु जी विश्राम करने की इच्छा से बद्रिकाश्रम चले गये। वह हिमालय की हेमवती नाम की गुफा में जाके छिप गये जहां वे अपनी दसों इंद्रियों और मन सहित विश्राम करने लगे। मुर विष्णु जी का पीछा करते हुए गुफा तक पहुंच गया। विष्णु जी को सोता हुआ देखकर उसने अपनी तलवार जैसे ही विष्णु जी को मारने के लिये उठाई तभी अचानक विष्णु जी के शरीर से तलवार के साथ एक अत्यंत सुंदर कन्या प्रकट हुई। मुर कन्या से युद्ध करने लगा और अन्त में मुर उस कन्या से युद्व करते हुए मृत्यु कोे प्राप्त हो गया।
युद्ध की आवाज सुनकर जब विष्णु जी निन्द्रा से जागे और उन्होंने मुर को मरा हुआ देखा तो वह विचार करने लगे इस दैत्य को किसने मारा है? कन्या ने हाथ जोड़कर भगवान विष्णु से कहा कि यह दैत्य आपको मारना चाहता था तब मैंने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध किया। भगवान ने देवी को उनके कार्य से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मॉगने को कहा। कन्या ने विष्णु जी से कहा ‘‘क्योंकि मैं आपकी एकादश इंद्रियों (शरीर की ग्यारह इंद्रियों) से विकसित हुई हूं इसलिए मुझे एकादशी के रूप में जाना जाए। मैं तपस्या से परिपूर्ण हूं इसलिए मेरी इच्छा है कि लोग एकादशी का व्रत और संयम करें। जो भी मेरा व्रत करें उसके समस्त पाप नष्ट हो जायें और वह अन्त में स्वर्गलोक को जाये। मेरे व्रत का आधा फल रात्रि को और आधा फल एक समय भोजन करने वाले को मिले। जो मनुष्य भक्तिपूवक मेरे व्रत को करें वे निश्चय ही विष्णुलोक को प्राप्त करें।
भगवान ने उन्हे यह वरदान दिया और कहा हे देवी आपका जन्म एकादशी तिथि को हुआ है इसलिए आप एकादशी के नाम से जानी जाएगी। चंूकि मार्गशीर्ष मास की कृष्ण पक्ष की 11वीं तिथि को देवी प्रकट हुुई थी इसलिए इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा और तभी से हिंदू पंचाग के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के 11वें दिन उपवास करके व फलाहारी भोजन करके एकादशी का व्रत करते है। ऐसा माना जाता है कि श्री कृष्ण जी ने स्वयं पाण्डवों कोे एकादशी देवी की जन्म की कथा सुनाई।
वर्ष की सभी एकादशी तिथियों के नाम हिंदी में (List of all Ekadashi)
- चैत्र माह:
- कामदा एकादशी
- पापमोचनी एकादशी
- वैशाख माह:
- मोहिनी एकादशी
- वरुथिनी एकादशी
- ज्येष्ठ माह:
- अपरा एकादशी
- निर्जला एकादशी
- आषाढ़ माह:
- योगिनी एकादशी
- देवशयनी एकादशी (हरिशयनी एकादशी)
- श्रावण माह:
- कामिका एकादशी
- पवित्रा एकादशी
- भाद्रपद माह:
- अजा एकादशी
- परिवर्तिनी एकादशी (पार्श्व एकादशी)
- आश्विन माह:
- इंदिरा एकादशी
- पाशांकुशा एकादशी
- कार्तिक माह:
- रमा एकादशी
- देवउठनी एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी)
- मार्गशीर्ष माह:
- उत्पन्ना एकादशी
- मोक्षदा एकादशी
- पौष माह:
- सफला एकादशी
- पुत्रदा एकादशी
- माघ माह:
- षट्तिला एकादशी
- जया एकादशी
- फाल्गुन माह:
- विजया एकादशी
- आमलकी एकादशी
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एकादशी व्रत कैसे शुरू करें
यदि आप एकादशी का व्रत शुरू करना चाहते है तो इसकी शुरूआत हिन्दू मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष व अग्रेंजी कैलेण्डर के नवम्बर या दिसम्बर माह में पड़ने वाली उत्पन्ना एकादशी से प्रारम्भ करना चाहिए क्योंकि इसी दिन एकादशी माता भगवान विष्णु जी के शरीर से उत्पन्न हुई थी। विष्णु जी ने उन्हें आर्शीवाद दिया और उनके इस व्रत को पूज्यनीय बताया था। इस दिन व्रत प्रारम्भ करना बहुत ही शुभ माना जाता है। इसके अतिरिक्त चैत्र, वैशाख या श्रावण माह में भी इस व्रत को शुरू किया जा सकता है।
एकादशी व्रत की विधि
एकादशी व्रत रखने से पहले दशमी तिथि की रात में भोजन नहीं करना चाहिए। एकादशी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्र धारण करें, हो सके तो पीेले या सफेद वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान को अच्छे से साफ करके भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की प्रतिमा या फोटो के आगे दीपक जलाकर व्रत का संकल्प करें। विष्णु जी और माता लक्ष्मी को हल्दी, पीला चंदन, अक्षत, पीले फूल, फल, तुलसी अर्पित करें, उनकी आरती करें और अन्त में व्रत की कथा अवश्य पढ़ें इसके बिना व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है। भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप व ध्यान करें। एकादशी व्रत सूर्योदय से प्रारम्भ होकर द्वादश तिथि के सूर्योदय तक रखा जाता है।
एकादशी व्रत का पारणः
हिन्दू पुराणों जैसे पद्म पुराण, स्कंद पुराण और विष्णु धर्मोतर पुराणों में कहा गया है कि इस दिन अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन दिनभर फल व जल का ही सेवन करना चाहिए और अगले दिन द्वादश तिथि को सुबह प्रातः स्नान आदि करके भगवान विष्णु व माता लक्ष्मी की पूजा आरती करने के बाद पारण के शुभ मुहूर्त में ही व्रत को खोलना चाहिए। द्वादश तिथि समाप्त होने से पहले की कुुछ ग्रहण कर लेना चाहिए।
एकादशी व्रत-उद्यापन विधि
एकादशी व्रत का उद्यापन तब किया जाता है, जब व्रत रखने वाले श्रद्धालु कुछ समय तक नियमित या वर्षो तक निश्चित संख्या में लगातार व्रत रखते हैं। भगवान को साक्षी मानकर व्रत के संकल्प की पूर्णता अन्तिम व्रत के पश्चात् उसके उद्यापन करने पर पूरी होती है। व्रतों के संकल्प का पुण्यफल तब ही मिलता है, जब उसका उद्यापन विधि पूर्वक किया जाता है अन्यथा एकादशी व्रत अधूरा ही माना जाता है। उद्यापन किये बगैर कोई भी व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है। इसलिए नियमित एकादशी व्रत करने वाले सभी भक्तों को उद्यापन के संकल्प को सम्पूर्ण पूजन विधि सहित पूरा करके संकल्प छोड़ना चाहिए।
एकादशी व्रत उद्यापन कृष्ण पक्ष की एकादशी को करना शुभ होता है। माघ में या भीम तिथि को भी उद्यापन किया जा सकता है। दशमी के दिन एक समय भोजन करें, एकादशी के दिन स्नान आदि से पवित्र होकर उद्यापन करें। संकल्प लेने में शुक्ल पक्ष की अथवा कृष्ण पक्ष की एकादशी को व्रत का उद्यापन करने का संकल्प करें।
एकादशी व्रत में क्या खायें
एकादशी व्रत में फलों में केला, आम, अंगूर, सूखे मेवे में बादाम, पिस्ता,चीनी, आलू,साबूदाना, शकरकन्द, जैतून, नारियल, दूध आदि।
एकादशी व्रत में क्या न खायें
एकादशी व्रत में बैंगन, जौ, सेमफली, गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग का सेवन नहीं करना चाहिए।
एकादशी व्रत में क्या नहीं करना चाहिएः-
- एकादशी का व्रत करने वाले को दशमी तिथि से ही व्रत का पालन करना चाहिए। दशमी के दिन सात प्रकार के अनाजों गेंहू, उड़द, जौ, मंूग, चावल, चना और मसूर की दाल नहीं खानी चाहिए क्योंकि एकादशी के दिन इस सात अनाजों की पूजा होती है।
- तुलसी के पौधे को जल नहीं देना चाहिए क्योंकि एकादशी का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन तुलसी माता भगवान विष्णु के लिए निर्जला व्रत रखती है।
- फूल-पत्तियों को नहीं तोड़ना चाहिए।
- तामसिक भोजन यानि मांस, लहसुन, प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।
- इस दिन न बाल धोने चाहिए और न बालों में तेल लगाना चाहिए। इससे आर्थिक स्थिति कमजोर हो सकती है।
- इस दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए।
एकादशी व्रत का महत्व
- जो पुण्य भूमि दान, गौ दान, जल दान आदि से होता है उससे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से मिलता है।
- एकादशी व्रत का प्रमुख महत्व मन और शारीरिक इंद्रियों पर नियंत्रण हासिल करना।
- मन कोे भक्ति के मार्ग की ओर ले जाना।
- भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त करना।
- शरीर स्वस्थ रहता है।
- हमारे पूर्वजों को बैकुण्ठ प्राप्त होता है।
Ekadashi 2025: जनवरी से दिसंबर तक की सही डेट और मुहूर्त
विष्णु जी से सम्बन्धित कुछ रोचक तथ्य पद्म पुुराण के अनुसार
- विष्णु जी को सबसे अधिक प्रिय पौधा- तुलसी
- विष्णु जी को सभी महिनों में अधिक प्रिय- कार्तिक
- विष्णु जी को सभी तीर्थो में अधिक प्रिय- द्वारिका
- विष्णु जी को सबसे अधिक प्रिय व्रत- एकादशी
एकादशी व्रत से सम्बन्धित उपयुक्त जानकारी के अतिरिक्त यदि आप अन्य किसी प्रश्न का उत्तर चाहतेे है तो आप अपने प्रश्न कमेंट बॉक्स में लिख सकते है।.