Indira Ekadashi Vrat Katha: आश्विन मास कृष्णपक्ष की ‘इन्दिरा’ एकादशी का माहात्म्य
Indira Ekadashi Vrat Katha: आश्विन मास कृष्ण पक्ष की 'इंदिरा' एकादशी का माहात्म्य जरूर सुनें। जिससे भगवान श्री हरी विष्णु की कृपा आपके व आपके परिवार के ऊपर सदैव बनी रहे।
Indira Ekadashi Vrat Katha: एकादशी का दिन लक्ष्मीपति, विश्वपति, यज्ञेश्वर-भगवान श्री हरी विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन व्रत उपवास करने से जातक को सुख समृद्धि तो मिलती ही है साथ में पितरों को भी मोक्ष की प्राप्ति होती है। और इस दिन इंदिरा एकादशी की कथा भी जरूर पढ़नी या सुननी चाहिए।
इंदिरा एकादशी की कथा (Indira Ekadashi Vrat Katha)
आप से अनुरोध है की कथा को पूरा पढ़े। कथा अधूरी नहीं छोड़नी चाहिए। और उसके बाद एकादशी माता की आरती करें।
युधिष्ठिरने पूछा— मधुसूदन ! कृपा करके मुझे यह बताइये कि आश्विनके कृष्णपक्षमें कौन-सी एकादशी होती है ?
भगवान् श्रीकृष्ण बोले—राजन् ! आश्विन कृष्णपक्षमें ‘इन्दिरा’ नामकी एकादशी होती है, उसके व्रतके प्रभावसे बड़े-बड़े पापोंका नाश हो जाता है। नीच योनिमें पड़े हुए पितरोंको भी यह एकादशी सद्गति देनेवाली है।
राजन्! पूर्वकालकी बात है, सत्ययुगमें इन्द्रसेन नाम से विख्यात राजकुमार थे, जो अब माहिष्मतीपुरी के राजा होकर धर्मपूर्वक प्रजा का पालन करते थे। उनका यश सब ओर फैल चुका था। राजा इन्द्रसेन भगवान् विष्णुकी भक्ति में तत्पर हो गोविन्द के मोक्ष दायक नामों का जप करते हुए समय व्यतीत करते थे और विधिपूर्वक अध्यात्म तत्त्व के चिन्तन में संलग्न रहते थे। एक दिन राजा राजसभा में सुखपूर्वक बैठे हुए थे, इतने ही में देवर्षि नारद आकाश से उतरकर वहाँ आ पहुँचे। उन्हें आया देख राजा हाथ जोड़कर खड़े हो गये और विधिपूर्वक पूजन करके उन्हें आसनपर बिठाया, इसके बाद वे इस प्रकार बोले—’मुनिश्रेष्ठ! आपकी कृपासे मेरी सर्वथा कुशल है । आज आपके दर्शनसे मेरी सम्पूर्ण यज्ञ-क्रियाएँ सफल हो गयीं । देवर्षे! अपने आगमनका कारण बताकर मुझपर कृपा करें।’
नारदजीने कहा–नृपश्रेष्ठ! सुनो, मेरी बात तुम्हें आश्चर्य में डालने वाली है, मैं ब्रह्मलोकसे यमलोक में आया था, वहाँ एक श्रेष्ठ आसनपर बैठा और यमराज ने मेरी भक्तिपूर्वक पूजा की। उस समय यमराज की सभामें मैंने तुम्हारे पिताको भी देखा था। वे व्रतभंग के दोषसे वहाँ आये थे। राजन्! उन्होंने तुमसे कहनेके लिये एक सन्देश दिया है, उसे सुनो। उन्होंने कहा है, ‘बेटा! मुझे ‘इन्दिरा’ के व्रत का पुण्य देकर स्वर्ग में भेजो।’ उनका यह सन्देश लेकर मैं तुम्हारे पास आया हूँ। राजन्! अपने पिता को स्वर्गलोक की प्राप्ति कराने के लिये ‘इन्दिरा’ का व्रत करो । राजाने पूछा- भगवन्! कृपा करके ‘इन्दिरा’ का व्रत बताइये । किस पक्ष में, किस तिथि को और किस विधि से उसका व्रत करना चाहिये ।
नारदजीने कहा- राजेन्द्र ! सुनो, मैं तुम्हें इस व्रत की शुभकारक विधि बतलाता हूँ। आश्विनमास के कृष्ण पक्ष में दशमी के उत्तम दिन को श्रद्धायुक्त चित्त से प्रातःकाल स्नान करे। फिर मध्याह्नकालमें स्नान करके एकाग्रचित्त हो एक समय भोजन करे तथा रात्रि में भूमिपर सोये । रात्रि के अन्त में निर्मल प्रभात होने पर एकादशी के दिन दातुन करके मुँह धोये; इसके बाद भक्तिभावसे निम्नांकित मन्त्र पढ़ते हुए उपवासका नियम ग्रहण करे-
अद्य स्थित्वा निराहारः सर्वभोगविवर्जितः । श्वो भोक्ष्ये पुण्डरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत ॥
‘कमलनयन भगवान् नारायण! आज मैं सब भोगोंसे अलग हो निराहार रहकर कल भोजन करूँगा। अच्युत! आप मुझे शरण दें।’
इस प्रकार नियम करके मध्याह्न काल में पितरों की प्रसन्नता के लिये शालग्राम-शिलाके सम्मुख विधिपूर्वक श्राद्ध करे तथा दक्षिणा से ब्राह्मणों का सत्कार करके उन्हें भोजन करावे । पितरों को दिये हुए अन्नमय पिण्ड को सूँघकर विद्वान् पुरुष गाय को खिला दे। फिर धूप और गन्ध आदिसे भगवान् हृषीकेश का पूजन करके रात्रि में उनके समीप जागरण करे। तत्पश्चात् सबेरा होने पर द्वादशी के दिन पुनः भक्तिपूर्वक श्री हरि की पूजा करे। उसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराकर भाई-बन्धु, नाती और पुत्र आदिके साथ स्वयं मौन होकर भोजन करे। राजन्! इस विधिसे आलस्यरहित होकर तुम ‘इन्दिरा’ का व्रत करो। इससे तुम्हारे पितर भगवान् विष्णु के वैकुण्ठ धाम में चले जायँगे।
भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं- राजन्! राजा इन्द्रसेन से ऐसा कहकर देवर्षि नारद अन्तर्धान हो गये। राजा ने उनकी बतायी हुई विधि से अन्तःपुर की रानियों, पुत्रों और भृत्यों सहित उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया । कुन्तीनन्दन ! व्रत पूर्ण होनेपर आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी । इन्द्रसेन के पिता गरुड़पर आरूढ़ होकर श्रीविष्णुधाम को चले गये और राजर्षि इन्द्रसेन भी अकण्टक राज्य का उपभोग करके अपने पुत्र को राज्यपर बिठाकर स्वयं स्वर्गलोक को गये। इस प्रकार मैंने तुम्हारे सामने ‘इन्दिरा’ व्रतके माहात्म्य का वर्णन किया है। इसको पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।
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