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Janmashtami 2025: जन्माष्टमी तिथि और शुभ मुहूर्त, जानिए कैसे करें इस दिन पूजा

Janmashtami 2025: जानते 2025 में जन्माष्टमी कब है, कैसे मनाये, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा और इसका महत्व क्या है।

Janmashtami 2025: जन्माष्टमी का पर्व हिन्दू त्योहारों में से एक है, जो बड़ें ही धूमधाम और प्रेम के साथ मनाया जाता है। जन्माष्टमी का त्योहार श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हर साल भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अगस्त महीने में मनाया जाता हैं। इस दिन व्रत रखने और कृष्ण जी की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। आइये जानते 2025 में जन्माष्टमी कब है, कैसे मनाये, पूजा का शुभ मुहूर्त क्या रहेगा और इसका महत्व क्या है।

जन्माष्टमी तिथि और शुभ मुहूर्त (Janmashtami 2025 Date)

जन्माष्टमी तिथि    16 अगस्त (शनिवार)

पूजा का शुभ मुहूर्त:   रात्रि 12 बजकर 03 मिनट से रात्रि 12 बजकर 47 मिनट तक (अवधि 43 मिनट)

जन्माष्टमी व्रत पारणा का शुभ मुहूर्त  17 अगस्त, सुबह 05 बजकर 50 मिनट के बाद

अष्टमी तिथि प्रारम्भ व समाप्त: 15 अगस्त रात्रि 11 बजकर 49 मिनट से 16 अगस्त रात्रि 09 बजकर 49 मिनट तक

रोहिणी नक्षत्र प्रारम्भ व समाप्त: 17 अगस्त सुबह 04 बजकर 38 मिनट से 18 अगस्त सुबह 03 बजकर 17 मिनट तक

जन्माष्टमी क्यों मनायी जाती है

हिन्दू धर्म में श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का आठवाँ अवतार माना गया है। पौराणिक कथा के अनुसार एक अत्याचारी राजा कंस था जिसके अत्याचारों से उसकी प्रजा बहुत दुःखी थी। कंस की एक बहन थी जिसक नाम देवकी था। कंस देवकी का विवाह वासुदेव के साथ सम्पन्न कर जब वापस आ रहा था तो आसमान से यह भविष्यवाणी हुई की देवकी का आठवाँ पुत्र तेरा वध करेगा। यह सुनते ही कंस ने अपनी बहन और बहनोई को कारागार में बंद कर दिया था। उसने एक-एक करके देवकी के सभी सातों पुत्रों का वध कर दिया। कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए देवकी के आठवें संतान के रूप में भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में मथुरा के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ और तभी से यह त्योहार मनाया जाने लगा।

जन्माष्टमी दो दिन क्यों मनायी जाती है

श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हर साल दो दिन मनाया जाता है। साधु, सन्यासी, स्मार्त संप्रदाय 15 व वैष्णव सम्प्रदाय के लोग 16 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगें। ऐसा माना जाता है कि पहले दिन साधु, सन्यासी स्मार्त संप्रदाय जबकि दूसरे दिन वैष्णव सम्प्रदाय और बृजवासी इस त्योहार को मनाते है। यह इसलिए क्योंकि स्मार्त इस्कॉन पर आधारित कृष्ण जन्मतिथि का पालन नहीं करते हैं। वैष्णव संस्कृति में अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के अनुसार, जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाता है। वहीं स्मार्त सप्तमी तिथि के आधार पर त्योहार मनाते है। वैष्णव अनुयायियों के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार हिंदू कैलेंडर की अष्टमी और नवमी तिथि को आता है जिसमें श्री कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद महीने में कृष्ण पक्ष के आठवें दिन मनाई जाती है। श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव देर रात को मनाया जाता है।

जन्माष्टमी कैसे मनायेः

श्री कृष्ण जी का जन्म अष्टमी तिथि को होने के कारण इसे जन्माष्टमी कहा जाता है और इसलिए इस दिन श्रीकृष्ण की बाल स्वरूप मूर्ति या फोटो का पूजन करना शुभ माना जाता है। जन्माष्टमी का पर्व आस्था व श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन प्रातः उठकर स्नान आदि करके व्रत का संकल्प लें। श्रीकृष्ण की प्रतिमा को गंगा जल, चरणामृत से स्नान कराकर शुद्व वस्त्र पहनायें। इसके पश्चात् पूजा आरती करें। कृष्ण जन्मोत्सव के बाद कृष्ण जी की पूजा की जाती है और रात 12 बजे के बाद पारण किया जाता है। इस व्रत को करने से भक्तों पर भगवान कृष्ण की हमेशा कृपा बनी रहती है, जीवन के सभी दुःख दूर होते है, सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।

इस दिन भारत के सभी कृष्ण मंदिरों को विशेष रूप से लाइटों व फूलों से सजाया जाता है। मंदिरों में झांकियाँ सजायी जाती है। कृष्ण भक्ति के गीतों को सुना जाता है। श्री कृष्ण जी के जन्म स्थान मथुुरा और वृन्दावन में भगवान के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते है। मंदिरों में भक्तों की भीड़ देखने लायक होती है।

इसके अतिरिक्त भारत के कुछ हिस्सों में दूध और दही से भरे मिटृी के बर्तन को तोड़ने की परम्परा है, यह सर्वाधिक महाराष्ट्र में प्रचलित है। जहां जगह-जगह दही हांडी तोड़ने के लिए प्रतियोगिताएंँ आयोजित की जाती है। यह बुराई के विनाश के प्रतीक के रूप में किया जाता है। इस दिन छोटे बच्चों को भगवान कृष्ण व राधा के रूप में तैयार किया जाता है।

जन्माष्टमी का महत्व

कृष्ण जन्माष्टमी हर्षोल्लास से मनाये जाने वाला उत्साह पूर्ण त्योहार है। यह अवसर हम सभी को प्रेम, कड़ी मेहनत, सामाजिक संबंध, कर्म आदि के बारे में भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षाओं का पालन करने के लिए भी प्रेरित करता है, जो सुखी एवं समृद्ध जीवन के लिए हमें ज्ञान प्रदान करता है।

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