श्री विघ्ननिवारक सिद्धिविनायक स्तोत्र- (Shri Siddhi vinayak Stotra)
Shri Siddhivinayak Stotra: श्री विघ्ननिवारक सिद्धिविनायक स्तोत्र हिंदी में अर्थ के साथ । Shri Sidhivinayk Stotra With Meaning in Hindi.
श्री सिद्धिविनायक स्तोत्र भगवान गणेश की स्तुति है। भक्त अपने जीवन में आने वाली परेशानियों को दूर करने के लिए भगवान सिद्धिविनायक की स्तुति करते हैं। इस स्तोत्र में 8 छंद हैं। इसमें कहा गया है कि आप नाम जप से ही संकटों को दूर करने वाले हैं, आप भगवान शिव के पुत्र हैं, भगवान इंद्र आपकी पूजा करते हैं, आपने देवी पार्वती के गर्भ से जन्म लिया है क्योंकि उन्होंने व्रत किया था। आप हमारे कष्टों को दूर करते हैं। देवी सिद्धि और देवी बुद्धि हमेशा आपके साथ हैं। आपके दाहिने कंधे के चारों ओर सुंड-दंड सुंदर लग रहा है। आपने अपने चार हाथों में चार हथियार पाशा, अंकुश, कमल और परशु धारण किए हुए हैं। सिद्धिविनायक मुझे मेरे जीवन में आने वाली परेशानियों, कठिनाइयों से मुक्त करें।
Shri Siddhi Vinayak Stotra with Hindi Meaning (श्री सिद्धिविनायक स्तोत्र)
विघ्नेश विघ्नचयखण्डननामधेय श्रीशंकरात्मज सुराधिपवन्द्यपाद ।
दुर्गामहाव्रतफलाखिलमङ्गलात्मन् विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ १ ॥
अर्थ: हे विघ्नेश ! हे सिद्धिविनायक ! आपका नाम विघ्न-समूहका खण्डन करने वाला है । आप भगवान शंकर के सुपुत्र है । देवराज इन्द्र आपके चरणों की वन्दना करते है । आप पार्वती जी के महान् व्रतके उत्तम फल एवं निखिल मङ्गलरुप है । आप मेरे विघ्नका निवारण करे ।
सत्पद्मरागमणिवर्णशरीरकान्तिः श्रीसिद्धिबुद्धिपरिचर्चितकुङ्कुमश्रीः ।
दक्षस्तने वलयितातिमनोज्ञशुण्डो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ २ ॥
अर्थ: सिद्धिविनायक ! आपके श्रीविग्रह की कान्ति उत्तम पद्मरागमणि के समान अरुण वर्ण की है । श्री सिद्धि और बुद्धि देवियों ने अनुलेपन करके आपके श्रीअङ्कों मे कुङ्कुमकी शोभा का विस्तार किया है । आपके दाहिने स्तनपर वलयाकार मुडा हुआ शुण्ड-दण्ड अत्यन्त मनोहर जान पडता है । आप मेरे विघ्न हर हर लीजिये । सिद्धिविनायक !
पाशाङ्कुशाब्जपरशूंश्र्च दधच्चतुर्भिर्दोर्भिश्र्च शोणकुसुमस्त्रगुमाङ्गजातः ।
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सिन्दूरशोभितललाटविधुप्रकाशो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ३ ॥
अर्थ: आप आपके चार हाथों में क्रमशः पाश, अङ्कुश, कमल और परशु धारण करते है, आप लाल फूलों की माला से अलंकृत हैं और उमा के अङ्गसे उत्पन्न हुए है तथा आपके सिन्दूरशोभित ललाट में चन्द्रमा का प्रकाश फैल रहा है, आप मेरे विघ्नों का अपहरण कीजिये । सिद्धिविनायक !
कार्येषु विघ्नचयभीतविरञ्चिमुख्यैः सम्पूजितः सुरवरैरपि मोदकाद्यैः ।
सर्वेषु च प्रथममेव सुरेषु पूज्यो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ४ ॥
अर्थ: सभी कार्यों मे विघ्न समूह के आ पडनेकी आशङ्का से भयभीत हुए ब्रह्मा आदि श्रेष्ठ देवताओं ने भी आपकी मोदक आदि मिष्टान्नों से भलीभॉंति पूजा की है । आप समस्त देवताओं मे सबसे पहले ही पूजनीय हैं । आप मेरे विघ्न समूहका निवारण कीजिये । सिद्धिविनायक !
शीघ्राञ्चनस्खलनतुङ्गरवोर्ध्वकण्ठ स्थूलेन्दुरुद्रगणहासितदेवसङ्घः ।
शूर्पश्रुतिश्र्च पृथुवर्तुलङ्गतुन्दो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ५ ॥
अर्थ: आप जल्दी जल्दी चलने, लडखडाने, उच्चस्वर से शब्द करने, ऊर्ध्वकण्ठ, स्थूल शरीर होने से चन्द्र, रुद्रगण आदि समस्त देवता समुदाय को हँसाते रहते हैं । आपके कान सूप के समान जान पडते हैं, आप मोटा गोलाकार और ऊँचा तुन्द धारण करते हैं । आप मेरे विघ्नोंका अपहरण कीजिये ।
यज्ञोपवीतपदलम्भितनागराजो मासादिपुण्यददृशीकृतऋक्षराजः ।
भक्ताभयप्रद दयालय विघ्नराज विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ६ ॥
अर्थ: आपने नागराज को यज्ञोपवित का स्थान दे रखा है, आप बालचन्द्र को मस्तकपर धारणकर दर्शनार्थियों को पुण्य प्रदान करते हैं । भक्तोंको अभय देने वाले दयाधाम विघ्नराज ! सिद्धिविनायक ! आप मेरे विघ्नोंको हर लीजिये !
सद्रत्नसारततिराजितसत्किरीटः कौस्तुम्भचारुवसनद्वय ऊर्जितश्रीः ।
सर्वत्र मङ्गलकरस्मरणप्रतापो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ७ ॥
अर्थ: आपका सुन्दर किरीट उत्तम रत्नों के सार भागों की श्रेणियों से उद्दीप्त होता है । आप कुसुम्भी रंगके दो मनोहर वस्त्र धारण करते हैं, आपकी शोभा कान्ति बहुत बढी-चढी है और सर्वत्र आपके स्मरणका प्रताप सबका मङ्गल करनेवाला है । सिद्धिविनायक ! आप मेरे विघ्न हरण करे ।
देवान्तकाद्यसुरभीतसुरार्तिहर्ता विज्ञानबोधनवरेण तमोऽपहर्ता ।
आनन्दितत्रिभुवनेश कुमारबन्धो विघ्नं ममापहर सिद्धिविनायक त्वम् ॥ ८ ॥
अर्थ: सिद्धिविनायक ! आप देवान्तक आदि असुरों से डरे हुए देवताओं की पीडा दूर करने वाले तथा विज्ञान बोध के वरदान से सबके अज्ञानान्धकारको हर लेने वाले हैं । त्रिभुवनपति इन्द्रको आनन्दित करने वाले कुमारबन्धो ! आप मेरे विघ्नोंका निवारण कीजिये ।
॥ इति श्रीमुद्गलपुराणे श्रीसिद्धिविनायक स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥ ॥ श्रीसिद्धिविनायकार्पणमस्तु ॥
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